साहित्य अकादेमी ने डोगरी कवयित्री तथा उपन्यासकार एवं साहित्य अकादेमी की
महत्तर सदस्य पद्मा सचदेव के निधन पर शोक व्यक्त किया है। साहित्य अकादेमी
के तृतीय तल स्थित सभाकक्ष में अपराह्न 2.00 बजे आयोजित शोक सभा में साहित्य
अकादेमी के कर्मचारियों को संबोधित करते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव के.
श्रीनिवासराव ने कहा कि अपनी विलक्षण रचनात्मकता के नाते वे डोगरी एवं हिंदी
साहित्य की अविस्मरणीय धरोहर बनी रहेंगी। साहित्य अकादेमी श्रीमती पद्मा सचदेव के
परिवार के प्रति गहरी संवेदना और विनम्र श्रद्धांजलि निवेदित करती है। उनका निधन
एक गहरे शून्य के साथ-साथ एक समृद्ध विरासत भी छोड़ गया है।
शोक सभा में सर्वप्रथम सचिव महोदय ने शोक संदेश पढ़ा एवं उसके बाद एक मिनट
का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। शोक सभा के बाद उनके प्रति सम्मान प्रकट
करते हुए साहित्य अकादेमी के समस्त कार्यालयों को आज आधे दिन के लिए बंद किया गया।
ज्ञात हो कि पद्मा सचदेव डोगरी भाषा की प्रथम आधुनिक कवयित्री थीं, जो
हिंदी में भी लिखती थीं। 1940 में संस्कृत विद्वानों के
परिवार में जम्मू में जन्मीं पद्मा जी ने लोककथाओं और लोकगीतों की समृद्ध वाचिक
परंपरा से पे्ररित होकर अपना कवि व्यक्तित्व बनाया। 1969 में
अपने पहले कविता-संग्रह मेरी कविता मेरे गीत के साथ
राष्ट्रीय साहित्य परिदृश्य में पदार्पण किया। इस पुस्तक को 1971 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया था।
उनके साहित्य में भारतीय स्त्री के हर्ष और विषाद, विभिन्न मनोभावों और विपदाओं को स्थान मिला है। वह निरंतर अपनी भाषा, वर्तमान घटनाओं, त्यौहारों तथा भारतीय स्त्री की समस्याओं जैसे ज्वलंत विषयों पर समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं में लिखती रहीं। डोगरी में आठ कविता-संग्रह, 3 गद्य की पुस्तकें तथा हिंदी में 19 कृतियाँ; जिनमें - कविता, साक्षात्कार, कहानियाँ, उपन्यास, यात्रावृत्तांत तथा संस्मरण शामिल हैं, प्रकाशित हुए। इसके अलावा उनकी 11 अनूदित कृतियाँ भी प्रकाशित हैं, जिसमें उन्होंने डोगरी से हिंदी, हिंदी से डोगरी, पंजाबी से हिंदी तथा हिंदी से पंजाबी, अंग्रेज़ी से हिंदी तथा हिंदी से अंग्रेजी में भी परस्पर अनुवाद किया है। उनकीं अनेक कहानियों टेली-धारावाहिकों तथा लघु फिल्मों में रूपांतरित किया गया तथा उनके हिंदी और डोगरी गीतों को व्यवासयिक हिंदी सिनेमा ने भी इस्तेमाल किया। उन्होंने अपनी भाषा को पहला संगीत डिस्क भी दिया, जिसमें न केवल गीत, बल्कि धुनें भी रची गईं और उन्हें लता मंगेशकर ने स्वरबद्ध किया।
पद्मा सचदेव जी को साहित्य अकादेमी पुरस्कार के अलावा केंद्रीय हिंदी
संस्थान द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कविता के
लिए कबीर सम्मान, सरस्वती सम्मान, जम्मू-कश्मीर
अकादमी का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू
पुरस्कार, साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार तथा भारत सरकार
द्वारा पद्मश्री सहित कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए थे।