- कृतार्थ सरदाना
इधर पिछले कुछ दिनों से सब टीवी के सर्वाधिक लोकप्रिय सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में एक कहानी को जिस तरह लंबा खींचा जा रहा है। उससे सभी निराश हैं। सही कहा जाये तो पिछले करीब 13 साल से दर्शकों के दिलों पर राज कर रहा यह सीरियल अब अपनी कहानी ही नहीं अपने उद्देश्य से भी भटक गया है। सीरियल के कथानाक में बार बार, बार बार सपनों को दिखाकर कहानी को कहीं का कहीं ले जाना तो बहुत खटकता ही है। इधर जेठा लाल की दुकान और गाँव की पुश्तैनी ज़मीन बिकने तक की नौबत आ गयी। जेठा लाल का साला सुंदर भी अपने जीजा की इस मुसीबत की घड़ी में अहमदाबाद से मुंबई पहुँच गया।
लेकिन अपने पति और परिवार के इस संकट काल में पत्नी दया का कहीं कोई पता नहीं है। वह अभी भी घर नहीं आई। कहानी के अनुसार वह गुजरात में समाज सेवा कर रही है। भला कौन पत्नी होगी जो अपने आदर्श पति और परिवार पर आई इस विपदा में उनके पास न आकर समाज सेवा करती रहेगी। ठीक है दया की भूमिका कर रही अभिनेत्री दिशा वकानी की साढ़े तीन साल बाद भी निर्माता वापसी कराने में असमर्थ रहे हैं। न ही वह कोई नयी दया ढूंढ पा रहे हैं। तो कम से कम ऐसे अटपटे कथानक तो न दिखाएँ,जो भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ हों। वह भी तब जब ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ सीरियल ही भारतीय संस्कृति और पारिवारिक संस्कारों की धुरी पर टिका है। इस सीरियल को दर्शक इसलिए ही इतना प्यार करते हैं कि इसमें पुत्र खुद पिता बनने के बाद भी अपने पिता से डरता है। पिता की हर बात मानना पुत्र का परमोधर्म है। सिर्फ पुत्र ही नहीं पूरा गोकुलधाम जेठा लाल के पिता चम्पक लाल का भी सम्मान करता है। इसमें बड़ों में ही नहीं बच्चों में भी निस्वार्थ और अटूट दोस्ती है। यहाँ हर कोई अपने पड़ोसी के सुख दुख में हमेशा साथ खड़ा है। लेकिन जब यह दिखाया जाये कि पत्नी ही पति की इस बड़ी मुसीबत में उसके साथ नहीं है। ऐसे में भी वह घर नहीं लौटी है, तो यह कहानी बेमानी हो जाती है।